उत्तराखंड
पतंजलि योपगीठ के गुरुकुलम का शिलान्यास, 500 करोड़ की लागत से होगा निर्माण, जानें क्या कुछ होगा खास…
उत्तराखंड के नाम एक और उपलब्धि जुड़ने वाली है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा गुरूकुलम खुलने जा रहा है। बताया जा रहा है कि केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को गुरुकुल के संस्थापक स्वामी दर्शनानन्द महाराज की जयंती के अवसर पर पतंजलि योपगीठ के गुरुकुलम का शिलान्यास किया है। 3 बीघा भूमि से प्रारंभ गुरुकुल का नाम स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर रखा गया है. जो शिक्षा की क्रांति का बड़ा केन्द्र होगा। सीएम धामी सहित इस मौके पर कई दिग्गज मौजूद रहे।
मिली जानकारी के अनुसार स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय पतंजलि गुरुकुलम के भव्य आधुनिक भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शामिल हुए। करीब 500 करोड़ रुपये की लागत से बन कर तैयार होने वाले विश्व के इस सबसे बड़े गुरुकुलम के शिलान्यास से पहले वैदिक रीति-रिवाज से पूजा पाठ हुआ। इसमें योग गुरु बाबा रामदेव के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी शामिल हुए।
बताया जा रहा है कि यह पहला लगभग 250 करोड़ की लागत से तैयार होने वाला 7 मंजिला भव्य पतंजलि गुरुकुलम होगा। इस गुरुकुल में लगभग 1500 छात्रों के लिए रहने की व्यवस्था होगी। विद्यार्थियों को हिन्दी,अंग्रेजी, संस्कृत से लेकर विश्व की 5 भाषाओं में शिक्षा दी जाएगी इसके अतिरिक्त यहां लगभग 250 करोड़ की लागत से आचार्यकुलम की शाखा स्थापित की जाएगी जिसमें लगभग पांच हजार बच्चें डे-बोर्डिंग का लाभ ले सकेंगे।इसके साथ ही यहां महर्षि दयानन्द अतिथि भवन बनाने की भी योजना है।
बताया जा रहा है कि इस गुरुकुलम के बारे में योग गुरु रामदेव का कहना है कि स्वामी दर्शनानन्द ने 118 वर्ष पूर्व 3 बीघा भूमि, 3 ब्रह्मचारी तथा 3 चवन्नी से गुरुकुल का प्रारंभ किया गया था। इसीलिए अब बन रहे दुनिया के इस सबसे बड़े गुरुकुलम का नाम स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर रखा है। यह शिक्षा की क्रांति का बड़ा केन्द्र होगा। यहां छात्रों को वैदिक रीति रिवाज से पठन-पाठन के साथ ही अत्याधुनिर शिक्षा भी मिलेगी। इसके लिए तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किए जाएंगे।
वहीं इस कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने कहा कि संस्कृत के संरक्षण और संवर्धन के लिए देश के गुरुकुल आगे आए। उन्होंने कहा कि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है दुनिया के कई विद्वानों ने प्रकृति और सृष्टि को समझने के लिए संस्कृत का ही अध्ययन किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अहम स्थान है योग दर्शन भी महर्षि पतंजलि ने संस्कृत में ही लिखा था। उन्होंने संस्कृत पढ़ने लिखने और बोलने वालों की कम होती संख्या को लेकर चिंता जताई।
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