Connect with us

अर्थ डे: धरा को रखना होगा सुरक्षित, आज लें यह प्रण…

उत्तराखंड

अर्थ डे: धरा को रखना होगा सुरक्षित, आज लें यह प्रण…

अर्थ डे या पृथ्वी दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को किया जाता है। पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है एवं जीवन यापन के लिये हवा, पानी, उचित तापमान, शुद्व भोजन, शुद्व मिट्टी एवं शुद्व पर्यावरण की नितान्त आवश्यकता है किन्तु मानवीय गतिविधियों से पृथ्वी का पर्यावरण निरन्तर बदल रहा है एवं पृथ्वी पर संकट सा आ रहा है।

इन्हीं सब बातो को याद करनें एवं अपने अस्थित्व को बचाने के लिये पृथ्वी दिवस का आयोजन किया जाता है। वर्तमान परिदृश्य में वदलते पर्यावरण के साथ जिसे हम जलवायु परिवर्तन भी कहतें हैं पृथ्वी दिवस का महत्व और भी वढ जाता है। पिछले कुछ दशकों से अचानक एवं असामायिक आंधी-तूफान, बारिश एवं ओलावृष्टि होना एक सामान्य बात सी हो गयी है। जनसामान्य के लिये यह आंधी-तूफान, असामायिक बारिश एवं ओलावृष्टि खासा महत्व नहीं रखती किन्तु किसानों की महीनों की मेहनत चंन्द मिनटों में बरबाद हो जाती है। साथ ही जंगलो में निरन्तर हो रही भीषण वनाग्नि एवं अन्य प्राकृतिक प्रकोप भी चिन्ता का कारण बने हुये हैै।

यह भी पढ़ें 👉  घटना: सड़क दुर्घटना मे दो भाईओ की मौत, परिवार मे कोहराम…

इस तरह के असामायिक परिवर्तन क्यों हो रहे हैं, इस पर प्रत्येक व्यक्ति को चिन्तन करनें व कुछ हद तक समझ्ानें की जरूरत है या कह सकते है कि मानव का प्रकृति के प्रति व्यवहार एवं मानवीय गतिविधियों के द्वारा इस तरह का विकास प्रकृति को रास नही आ रहा है। कृषि पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जिसे हम सामान्य भाषा मे जलवायु परिवर्त कह रहे है। अब प्रश्न सामने आता है कि विकास एवं पर्यावरण संरक्षण में साथ-साथ सामंजस्य कैसे बनाया जा सकता है, क्या विकास आवश्यक है या पर्यावरण संरक्षण, या दोनो, यह एक यक्ष प्रश्न है। किसान इस देश का अन्नदाता है एवं एवं अन्नदाता की प्रकृति की मार झेल रहा है।

यह भी पढ़ें 👉  Breaking: उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के लिए इन पदों का नया अपडेट जारी…

ध्यान दे कि जहां 1950 में कृषि का सकल घरेलू उत्पादन में 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी वही हिस्सेदारी आज निरन्तर घट रही है। किंतु देखा जाए तो जिस गति से सकल घरेलू उत्पादन में कृषि की सहभागिता घटी है उस गति से जीविकोपार्जन व रोजगार प्रदान करने में कृषि की भूमिका नही घटी उदाहरण स्वरूप जहां जीविकोपार्जन व रोजगार प्रदान करने में कृषि की सहभागिता 1950 में लगभग 80 प्रतिशत थी वहां वह आज भी लगभग 55 सें 60 प्रतिशत के करीब है।

जहां तक वैज्ञानिक कृषि का प्रश्न है, तो भारतवर्ष मे वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर विभिन्न प्रकार के शोध बीसवीं सदी के शुरूआत से ही प्रारंभ हो गये थे नतीजतन आज हमारे देष में लगभग 70 से अधिक कृषि विश्वविद्यालय है। साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जैसी विशाल संस्था है जिसके अंतर्गत कृषि के विभिन्न पहलुओं पर काम करने वाले 100 से अधिक सुदृढ़ संस्थान देश के विभिन्न भू-भागों में स्थापित है। यह एक स्थापित तथ्य है कि कृषि विश्वविद्यालयों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व संबंधित संस्थानों ने देश की पारंपरिक कृषि को वैज्ञानिक रूप देने, उत्पादकता तथा लाभ सृजित करने एवं देश में अन्न का पर्याप्त भण्डार निर्धारित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभायी है किन्तु पर्यावरणीय कृषि की दृष्टि से आज भी बहुत कुछ समझ्ाने व करने की जरूरत है।

यह भी पढ़ें 👉  घटना: सड़क दुर्घटना मे दो भाईओ की मौत, परिवार मे कोहराम…

Latest News -
Continue Reading
Advertisement

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More in उत्तराखंड

उत्तराखंड

उत्तराखंड

ट्रेंडिंग खबरें

To Top