उत्तराखंड
मासूमियत भरी उम्र में बच्चे उठा रहे आत्महत्या जैसा कदम, आठवीं के छात्र ने लगाई फांसी…
Uttarakhand News: मासूम बच्चे… पढऩे, खेलने, तनाव मुक्त होकर खुशियां मनाने की उम्र… जब मासूमियत भरी इस उम्र में बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं, तो एक परिवार नहीं, बल्कि पूरे समाज को धक्का लगता है। ऐसा ही मामला उत्तराखंड के ऋषिकेश से सामने आया है। यहां कक्षा आठवीं के 14 वर्षीय छात्र ने अपने कमरे में पंखे से लटक कर फांसी लगा ली। जिससे उसकी मौत हो गई। बेटे के इस खौफनाक कदम से जहां परिजनों में कोहराम मचा है। वहीं ऐसी घटनाओं के बाद सवाल उठते हैं कि आखिर बच्चे ने ऐसा किया क्यों?
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार ऋषिकेश में गंगानगर हनुमंतपुरम निवासी छात्र स्कूल से छुट्टी होने के बाद घर पहुंचा। जिसके बाद सिद्धार्थ ने ट्यूशन जाने से मना कर दिया और वह टीवी देखने लगा। इस दौरान पिता ने सिद्धार्थ को ट्यूशन जाने के लिए दबाव बनाया। जिससे नाराज होकर सिद्धार्थ अपने कमरे में चला गया। कुछ देर तक सिद्धार्थ के कमरे से कोई आवाज नहीं आने पर परिजन कमरे में पहुंचे तो दरवाजा अंदर से बंद था। रोशनदान से झांक कर देखा तो बेटा पंखे से लटका हुआ दिखाई दिया। दरवाजा तोड़कर परिजनों ने बेटे को फांसी के फंदे से नीचे उतरा और उसे लेकर एम्स पहुंचे। जहां डॉक्टर ने सिद्धार्थ को मृत घोषित कर दिया।
सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पंचायतनामा भरने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। तो वहीं बेटे की मौत से परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। ऐसे में ये मामला अन्य परिजनों को भी स्तब्ध कर गया है। कैसे छोटी सी उम्र में बच्चें ऐसे खौफनाक कदम उठा रहे है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों व विभिन्न शोध के अनुसार सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले या तो टीनएज में होते हैं या युवावस्था में। टीनएज प्रोबेशन का समय होता है। बच्चों में कई तरह के मानसिक व शारीरिक बदलाव होते हैं। कई नए हार्मोन बनते हैं। वे इस दौरान काफी संवेदनशील होते हैं। छोटी सी बात भी उनके मन पर गहरा प्रभाव डालती है।
गौरतलब है कि दुनियाभर में आत्महत्या के आंकड़े साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। भारत की बात करें, तो आंकड़े आपको परेशान कर सकते हैं। यहां 15 से 24 साल के बच्चों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। देश में रिकॉर्ड की गई आत्महत्याओं में से 35% इसी आयु वर्ग में होती हैं। सरकार के 2020 के डाटा को देखें, तो भारत में हर दिन औसतन 31 बच्चों ने अपनी जान ले ली।
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